Wednesday, 27 July 2016




सदन 14 सत्र 2 के माननीय सदस्य श्री म. रणधीर सिंह भीण्डर द्वारा पूछे गए सवाल पर सरकार का जवाब
प्रश्‍न- 1 क्‍या यह सही है कि वर्ष 2002 में वल्‍लभनगर विधान सभा क्षेत्र में वाना मेनार बांध का शिलान्‍यास पूर्व मुख्‍यमंत्री श्री अशोक गहलोत व पूर्व गृह मंत्री श्री गुलाबचन्‍द्र सिंह शक्‍तावत द्वारा किया गया था ?
2 सरकार द्वारा इस हेतु कितनी राशी स्‍वीकृत की गई व बांध नहीं बनाने के क्‍या कारण थें
3 क्‍या सरकार उक्‍त बांध निर्माण का कार्य प्रारम्‍भ करने का विचार रखती है ? यदि हां, तो कब तक व नहीं, तो क्‍यों ?
उत्तर-










1-

वल्‍लभनगर विधान सभा क्षेत्र में वाना मेनार बांध का शिलान्‍यास दिनांक 20.09.2003 को पूर्व मुख्‍यमंत्री श्री अशोक गहलोत व पूर्व गृह मंत्री श्री गुलाबचन्‍द्र सिंह शक्‍तावत द्वारा किया गया था।

2-

उक्‍त कार्य की प्रशासनिक एवं वित्‍तीय स्‍वीकृति जन स्‍वास्‍थ्‍य अभियान्त्रिकी विभाग की वित्‍त समिति द्वारा राशि रूपये 553.34 लाख की जारी की गई थी।

वाना मेनार बांध बीसलपुर बांध के जलग्रहण क्षेत्र में होने के कारण निर्माण कार्य प्रारम्‍भ नहीं हो सका।



3-

वर्तमान में बीसलपुर परियेाजना के जलग्रहण क्षेत्र में नये बांध के निर्माण पर प्रतिबन्‍ध है। प्रस्‍तावित वाना मेनार बांध का निर्माण, मात्र पेयजल योजना हेतु माईक्रो वाटरशेड बेस्‍ड हाईड्रोलोजी गणना पश्‍चात सक्षम स्‍वीकृति प्राप्‍त कर प्रारम्‍भ किया जाना प्रस्‍तावित है।  

Monday, 25 July 2016

अहीर जाति एक इतिहास-

 अहीर समाज एक नजर:-

                           

 


अहीर प्रमुखतः एक हिन्दू भारतीय जाति समूह है,जिसके सदस्यों को यादव समुदाय के नाम से भी पहचाना जाता है तथा अहीर व यादव या राव साहब[1][2] शब्दों को एक दूसरे का पर्यायवाची समझा जाता है।[3] अहीरों को एक जाति, वर्ण, आदिम जाति या नश्ल के रूप मे वर्णित किया जाता है, जिन्होने भारत व नेपाल के कई हिस्सों पर राज किया।
   

शब्दार्थ

अमरकोष मे गोप शब्द के अर्थ गोपाल, गोसंख्य, गोधुक, आभीर, वल्लब, ग्वाला व अहीर आदि बताये गए हैं।[5]
प्राकृत-हिन्दी शब्दकोश के अनुसार भी अहिर, अहीर, आभीर व ग्वाला समानार्थी शब्द हैं।[6] हिन्दी क्षेत्रों में अहीर, ग्वाला तथा यादव शब्द प्रायः परस्पर समानार्थी माने जाते हैं।.[7][8] वे कई अन्य नामो से भी जाने जाते हैं, जैसे कि गवली,[9] घोसी या घोषी,[10] तथा बुंदेलखंड मे दौवा अहीर।

पौराणिक आभीर जाति से उद्भव

तमिल भाषा के एक- दो विद्वानों को छोडकर शेष सभी भारतीय विद्वान इस बात से सहमत हैं कि अहीर शब्द संस्कृत के आभीर शब्द का तद्भव रूप है।[12] आभीर (हिंदी अहीर) एक घुमक्कड़ जाति थी जो शकों की भांति बाहर से हिंदुस्तान में आई।[13]
आभीरों को म्लेच्छ देश में निवास करने के कारण अन्य स्थानीय आदिम जातियों के साथ म्लेच्छों की कोटि में रखा जाता था तथा वृत्य क्षत्रिय कहा जाता था।[14] महाभारत में भी युद्धप्रिय, घुमक्कड़, गोपाल अभीरों का उल्लेख मिलता है।[15] आभीरों का उल्लेख अनेक शिलालेखों में पाया जाता है। शक राजाओं की सेनाओं में ये लोग सेनापति के पद पर नियुक्त थे। आभीर राजा ईश्वरसेन का उल्लेख नासिक के एक शिलालेख में मिलता है। ईस्वी सन्‌ की चौथी शताब्दी तक अभीरों का राज्य रहा। अंततोगत्वा कुछ अभीर राजपूत जाति में अंतर्मुक्त हुये व कुछ अहीर कहलाए, जिन्हें राजपूतों सा ही योद्धा माना गया।[16]
आजकल की अहीर जाति ही प्राचीन काल के आभीर हैं।[13][17] सौराष्ट्र के क्षत्रप शिलालेखों में भी प्रायः आभीरों का वर्णन मिलता है। पुराणों व बृहतसंहिता के अनुसार समुद्रगुप्त काल में भी दक्षिण में आभीरों का निवास था।[18] उसके बाद यह जाति भारत के अन्य हिस्सों में भी बस गयी। मध्य प्रदेश के अहिरवाड़ा को भी आभीरों ने संभवतः बाद में ही विकसित किया। राजस्थान में आभीरों के निवास का प्रमाण जोधपुर शिलालेख (संवत 918) में मिलता है, जिसके अनुसार आभीर अपने हिंसक दुराचरण के कारण निकटवर्ती इलाकों के निवासियों के लिए आतंक बने हुये थे।[19]
यद्यपि पुराणों में वर्णित अभीरों की विस्तृत संप्रभुता 6ठवीं शताब्दी तक नहीं टिक सकी, परंतु बाद के समय में भी आभीर राजकुमारों का वर्णन मिलता है, हेमचन्द्र के "दयाश्रय काव्य" में जूनागढ़ के निकट वनथली के चूड़ासम राजकुमार गृहरिपु को यादव व आभीर कहा गया है। भाटों की श्रुतियों व लोक कथाओं में आज भी चूड़ासम "अहीर राणा" कहे जाते हैं। अंबेरी के शिलालेख में सिंघण के ब्राह्मण सेनापति खोलेश्वर द्वारा आभीर राजा के विनाश का वर्णन तथा खानदेश में पाये गए गवली (ग्वाला) राज के प्राचीन अवशेषों जिन्हें पुरातात्विक रूप से देवगिरि के यादवों के शासन काल का माना गया है। यह सभी प्रमाण इस तथ्य को बल देते हैं कि आभीर यादवों से संबन्धित थे। आज तक अहीरों में यदुवंशी अहीर नामक उप जाति का पाया जाना भी इसकी पुष्टि करता है।[20]

इतिहास

अहीरों की ऐतिहासिक उत्पत्ति को लेकर विभिन्न इतिहासकर एकमत नहीं हैं। परंतु महाभारत या श्री मदभागवत गीता के युग मे भी यादवों के आस्तित्व की अनुभूति होती है तथा उस युग मे भी इन्हें आभीर,अहीर, गोप या ग्वाला ही कहा जाता था।[21] कुछ विद्वान इन्हे भारत मे आर्यों से पहले आया हुआ बताते हैं, परंतु शारीरिक गठन के अनुसार इन्हें आर्य माना जाता है।[22] पौराणिक दृष्टि से, अहीर या आभीर यदुवंशी राजा आहुक के वंशज है।[23] शक्ति संगम तंत्र मे उल्लेख मिलता है कि राजा ययाति के दो पत्नियाँ थीं-देवयानी व शर्मिष्ठा। देवयानी से यदु व तुर्वशू नामक पुत्र हुये। यदु के वंशज यादव कहलाए। यदुवंशीय भीम सात्वत के वृष्णि आदि चार पुत्र हुये व इनहि की कई पीढ़ियों बाद राजा आहुक हुये, जिनके वंशज आभीर या अहीर कहलाए।[24]
             
                               आहुक वंशात समुद्भूता आभीरा इति प्रकीर्तिता।(शक्ति संगम तंत्र, पृष्ठ 164)[25]

इस पंक्ति से स्पष्ट होता है कि यादव व आभीर मूलतः एक ही वंश के क्षत्रिय थे तथा "हरिवंश पुराण" मे भी इस तथ्य की पुष्टि होती है।[26]
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से, अहीरों ने 108 A॰D॰ मे मध्य भारत मे स्थित 'अहीर बाटक नगर' या 'अहीरोरा' व उत्तर प्रदेश के झाँसी जिले मे अहिरवाड़ा की नीव रखी थी। रुद्रमूर्ति नामक अहीर अहिरवाड़ा का सेनापति था जो कालांतर मे राजा बना। माधुरीपुत्र, ईश्वरसेन व शिवदत्त इस बंश के मशहूर राजा हुये, जो बाद मे यादव राजपूतो मे सम्मिलित हो गये।[1]

वर्गीकरण

प्रमुख रूप से अहीरो के तीन सामाजिक वर्ग है-यदुवंशी, नंदवंशी व ग्वालवंशी। इनमे वंशोत्पत्ति को लेकर बिभाजन है। यदुवंशी स्वयं को राजा नन्द का वंशज बताते है व ग्वालवंशी प्रभु कृष्ण के ग्वाल सखाओ से संबन्धित बताए जाते है।[1] एक अन्य दंतकथा के अनुसार भगवान कृष्ण जब असुरो का वध करने निकलते है तब माता यशोदा उन्हे टोकती है, उत्तर देते देते कृष्ण अपने बालमित्रो सहित यमुना नदी पार कर जाते है। कृष्ण के साथ असुर वध हेतु यमुना पार जाने वाले यह बालसखा कालांतर मे अहीर नंदवंशी कहलाए।[27] आधुनिक साक्ष्यों व इतिहासकारों के अनुसार नंदवंशी व यदुवंशी मौलिक रूप से समानार्थी है,[28] क्योंकि ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार यदु नरेश वासुदेव तथा नन्द बाबा निकट संबंधी या कुटुंबीजन थे व यदुवंशी थे। नन्द की स्वयं की कोई संतान नहीं थी अतः यदु राजकुमार कृष्ण ही नंदवश के पूर्वज हुये। [29][30]
अहीरों का बहू संख्यक कृषक संवर्ग स्वयं को ग्वाल अहीरों से श्रेष्ठ व जाट, राजपूत, गुर्जर आदि कृषक वर्गों के बराबर का मानता है। ग्वाल अहीरों का प्रमुख व्यवसाय पशुपालन व दुग्ध-व्यापार है तथा यह वर्ग उत्तर प्रदेश की सीमाओं व हरियाणा के फ़रीदाबाद व गुड़गाँव जनपदों में पाया जाता है। प्रारम्भ में तीव्र रहा यह विभेद अब कम हो चला है।[31] बनारस के ग्वाल अहीरों को 'सरदार' उपनाम से संबोधित किया जाता है।[32][33]
मानव वैज्ञानिक कुमार सुरेश सिंह के अनुसार, अहीर समुदाय लगभग 64 बहिर्विवाही उपकुलों मे विभाजित है। कुछ उपकुल इस प्रकार है- जग्दोलिया, चित्तोसिया, सुनारिया, विछवाल, जाजम, ढडवाल, खैरवाल, डीवा, मोटन, फूडोतिया, कोसलिया, खतोड़िया, भकुलान, भाकरिया, अफरेया, काकलीय, तांतला, जाजड़िया, दोधड़, निर्वाण, सतोरिया, लोचुगा, चौरा, कसेरा, लांबा, खोड़ा, खापरीय, टीकला तथा खोसिया। प्रत्येक कुल का एक कुलदेवता है। मजबूत विरासत व मूल रूप से सैन्य पृष्ठभूमि से बाद मे कृषक चरवाहा बनी अहीर जाति स्वयं को सामाजिक पदानुक्रम मे ब्राह्मण व राजपूतो से निकटतम बाद का व जाटो के बराबर का मानती है। अन्य जातियाँ भी इन्हे महत्वपूर्ण समुदाय का मानती है।[1]

योद्धा जाति के रूप में

अहीर ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से एक लड़ाकू जाति है।[34] 1920 मे ब्रिटिश शासन ने अहीरों को एक "कृषक जाति" के रूप मे वर्गीकृत किया था जो कि उस कTल में "लड़ाकू जाति" का पर्याय थी। ,[35] वे 1898 से सेना में भर्ती होते रहे थे।[36] तब ब्रिटिश सरकार ने अहीरों की चार कंपनियाँ बनायीं थी, इनमें से दो 95वीं रसेल इंफंटरी में थीं।[37] 1962 के भारत चीन युद्ध के दौरान 13 कुमायूं रेजीमेंट की अहीर कंपनी द्वारा रेजंगला का मोर्चा भारतीय मीडिया में सरहनीय रहा है। .[38][39] वे भारतीय सेना की राजपूत रेजीमेंट में भी भागीदार हैं।[40] भारतीय हथियार बंद सेना में आज तक बख्तरबंद कोरों व तोपखानों में अहीरों की एकल टुकड़ियाँ विद्यमान हैं।[41]



एतिहासिक यादव (अहीर) नृप व कुलीन प्रशासक

  • पुरनमल अहीर, अहीर देश, मालवा, एम॰पी.[23][24]
  • ठकुराइन लराई डुलाया, नाइगाव रिबाई,एम॰पी.[25]
  • ठाकुर लछमन सिंह,नाइगाव रिबाई,एम॰पी.[25]
  • कुँवर जगत सिंह, नाइगाव रिबाई,एम॰पी.[25]
  • लाल जी पटेल, देवगुरडिया,मालवा, एम॰पी.[26]
  • चूरामन अहीर , मंडला,एम॰पी. [27]
  • राव गूजरमल, रेवाड़ी [28]
  • राव तेज़ सिंह, रेवाड़ी [29]
  • राव गोपाल देव, रेवाड़ी [30]
  • महाक्षत्रप ईश्वर दत्त, प्राचीन पश्चिम भारत [31]
  • रुद्रामूर्ति अहीर, अहिरवाड़ा, झाँसी,यू॰पी॰[32][33]
  • राजा बुध,बदायू, यू॰पी॰ [34][35]
  • आदि राजा , अहिछत्र,यू॰पी॰ [36]
  • राजा दिग्पाल, महाबन, यू॰पी॰ [37]
  • राणा कतीरा,चित्तौड़, राजस्थान [37][38][39]
  • वीरसेन अहीर, जलगाव, महाराष्ट्र [40]
  • राव रुदा सिंह, रेवाड़ी [41]
  • राव राम सिंह, रेवाड़ी[42]
  • राव साहबाज सिंह, रेवाड़ी[43]
  • राव नंदराम, रेवाड़ी[44]
  • राव बलकिशन,रेवाड़ी [45]
  • भकतमन अहीर, नेपाल [46]
  • भुवन सिंह , नेपाल [47][46]
  • बारा सिंहा , नेपाल [48]
  • राव छिददु सिंह, भरौल, मैनपुरी,यू॰पी॰[49]
  • राजमाता, जिजाऊ.बुलढाणा,महाराष्ट्र [50]
  • राजा खरक सिंह व राजा हरी सिंह, तिरहुत बरेली यू॰पी॰ [51]
  • अभिसार, जम्मू व कश्मीर [52][53][54]
  • मित्रसेन अहीर, रेवाड़ी [55]
  • राव तुलाराम अहीर [56][57]
  • राव किशन गोपाल, रेवाड़ी [58] [59]
  • अहीर राणा रा नवगन, जूनागढ़ [60][61]
  • देवयात बोदार अहीर [62] [63][64]
  • अहीर राणा रा गृहरिपु जूनागढ़ [65][66]
  • आशा अहीर, असीरगढ़ दुर्ग [67][68][69][70][71]
  • रुद्रभूति [72]
  • ईश्वरसेन, नासिक [73][74][75][76]
  • माधुरीपुत्र [77]
  • आल्हा व उदल, महोबा [78]
  • राजा दिग्पाल अहीर, महाबन, मथुरा [37][79]
  • बदन अहीर, हमीरपुर [80]
  • अमर सिंह, पीलीभीत [81]
  • हीर चंद यादव, जौनपुर [82]
  • बीजा सिंह अहीर (बीजा गावली), बीजगढ़ [83][84]
  • गौतमी अहीर, मांडू
  • रनसुर व घमसुर, देवगढ़ [85]
  • वसूसेन, नागार्जुनकुंड[86]
  • वीरान अझगुमूथु कोणे [87][88]
  • ठाकुर हरज्ञान सिंह यादव, खल्थौन, ग्वालियर[8     

 

देवगिरि सेऊना यादव

खानदेश अवशेषों के पौरातत्विक विश्लेषण से यह सिद्ध होता है कि यह यदुवंशी अहीरों का गढ़ था।[91] इस राजवंश मे निम्न प्रमुख शासक हुये -
  • दृढ़प्रहा [92]
  • सेऊणा चन्द्र प्रथम [92]
  • ढाइडियप्पा प्रथम [92]
  • भिल्लम प्रथम [92]
  • राजगी[92]
  • वेडुगी प्रथम [92]
  • धाड़ियप्पा द्वितीय [92]
  • भिल्लम द्वितीय (सक 922)[92]
  • वेशुग्गी प्रथम [92]
  • भिल्लम तृतीय (सक 948)[92]
  • वेडुगी द्वितीय[92]
  • सेऊणा चन्द्र द्वितीय (सक 991)[92]
  • परामदेव [92]
  • सिंघण[92]
  • मलुगी [92]
  • अमरगांगेय [92]
  • अमरमालगी [92]
  • भिल्लम पंचम [93]
  • सिंघण द्वितीय [94][95]
  • राम चन्द्र [96]            

कलचूरी साम्राज्य

उत्तरी व दक्षिणी कलछुरियों के दो साम्राज्य हुये है। इतिहास मे उत्तरी कलछुरियों को राजपूत[104] व दक्षिणी कलचुरियों को अहीर माना जाता है।[105] दक्षिणी कलछुरियों मे निम्न शासक प्रमुख थे।[106] [107] 248-49 ईस्वी से प्रारम्भ होने वाली कलचूरी चेदी संवत का प्रचालन भी आभीर (अहीर) सम्राट ईश्वरसेन ने किया था।[108]
  • कृष्ण
  • बिज्जला
  • सोमेश्वर
  • संगमा                       

                                                                          Thanks

                                                                 Kishan Ahir


 


 




 



 


 


Sunday, 24 July 2016





मेरे  भाई  पुष्कर अहीर की  सड़क हादसे में मौत होना मेरी जिंदगी की सबसे बुरी घटना है